कविता संग्रह >> जितना खिड़की से दिखता है जितना खिड़की से दिखता हैशैलेन्द्र शर्मा
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अवध बिहारी श्रीवास्तव के प्रतिनिधि गीतों का संग्रह
सम्पादकीय
गीत के शलाका-पुरुष आ. अवध बिहारी श्रीवास्तव के गीतों के संचयन में मैं बड़े धर्मसंकट में था कि उनके अबतक प्रकाशित तीन गीत संग्रहों में किन गीतों को सम्मिलित न करूँ, मुझे तो उनका प्रत्येक गीत उत्कृष्ट लगता है. फिर भी एक सीमा तो रखनी ही थी. फलतः उनके सभी प्रकाशित गीत संग्रहों (1) हल्दी के छापे, (2) मण्डी चले कबीर, और (3) बस्ती के भीतर से कुल 153 गीतों को पुस्तक प्रकाशन के क्रम के आधार पर तीन खण्डों में रखकर प्रस्तुत किया है जिससे कवि की काव्य यात्रा को सुगमता से आँकलित किया जा सके.
अवध बिहारी श्रीवास्तव जी की सेवानिवृत्ति के पश्चात वर्ष 1993 में 'हल्दी के छापे' नामक उनका प्रथम काव्यसंग्रह आया था. इस संग्रह पर वरिष्ठ गीतकार कीर्तिशेष वीरेन्द्र मिश्र की यह टिप्पणी ध्यातव्य है- "‘हल्दी के छापे' के गीत और गीतकार मेरे परिचय क्षेत्र में नहीं थे. इन पंक्तियों के लिखते समय तक भी कवि के दर्शन नहीं हुए. लेकिन कवि से व्यक्तिश: बिना मिले भी, उक्त गीत संग्रह द्वारा मैं बहुत कुछ पा गया हूँ. उनके गीत पढ़ने शुरू किये तो एक बैठक में ही उन्हें आत्मसात कर लेने की कुछ ऐसी विवशता सी हो गई कि उस समय मैं और कुछ नहीं कर सका. मुझे आश्चर्य है, दुख भी कि इतनी महत्वपूर्ण गीत/नवगीत रचनाओं से मैं वंचित रहा. एक पाठक की दृष्टि से अवध बिहारी जी को इन गीतों द्वारा सहज रुप से ग्रहण करना उनके द्वारा व्यक्त समग्र संवेदन और मुद्रानुभव को ग्रहण करने जैसा हैं. रचनाओं में अनुभूत संवेदना की गहरी पकड़ तो है ही, उसकी स्पष्ट और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति भी है. इन गीतों में जो ताज़गी है, वैसी आज के साँचे-ढले और पिष्टपेषणीय गीतों/ नवगीतों में प्रायः अनुपस्थित है. संघर्षपूर्ण जीवन-यथार्थ को कवि ने कलात्मकता के एकदम नये मानवीय संस्कार द्वारा सिद्ध किया है. जिन्हें आधुनिक गीत के भविष्य की जरा भी चिन्ता है उन सबसे मेरा विनम्र निवेदन है कि 'हल्दी के छापे' के भारतीय संस्कार-सम्पन्न गीतों को एकबार ज़रूर पढ़ें."
इस बात को आगे बढ़ाते हुए मैं अवध बिहारी जी के शिक्षक रहे चर्चित नवगीत- पुस्तक 'वंशी और मादल' के रचयिता कीर्तिशेष ठाकुर प्रसाद सिंह के विचार उद्धृत करना चाहूँगा- "अत्यन्त साधारण होकर कविता लिखी जा सके यही नयी गीत-कविता की सबसे बड़ी कसौटी है. जहाँ कविता की सारी स्थितियाँ समाप्त हो जाती हैं, जहाँ हर क्षण वर्णनात्मक हो जाने का खतरा रहता है, वहाँ भी अत्यन्त सामान्य आलम्बनों के बल पर आये दिन के कार्य व्यापारों से कविता के उपकरण जुटा लेना कवि की बहुत बड़ी कसौटी है जिस पर अवध बिहारी जी खरे उतरते हैं। एक छोटा सा उदाहरण देता चलूँ-
मत लिखना बड़की को फ्राकें छोटी होती/ छोटू बिना किताबों के पढ़ने जाता है/ थोड़ा धान हुआ था, साहूकार ले गया/ फिर वह रोज न जाने क्या लेने आता है/ जितना गुस्सा भरा हमारी आँखों में है/ भइया के आने तक उसे सहेजे रखना/ भइया हैं परदेश, न जाने कैसे होंगे/ भाभी उनको सोच समझकर पाती लिखना. अत्यन्त सरल, सामान्य और बिना किसी अतिशयोक्ति के कही हुई बातें कितना मतलब रखती हैं, यह तथ्य ये पंक्तियाँ स्पष्ट करती हैं."
अवध बिहारी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में मैं कुछ कहूँ इसके बजाय मैं समझता हूँ उन्हीं के विचारों से आपको अवगत कराना अधिक उपयुक्त होगा. वे कहते हैं--
"जीवन के उतार-चढ़ाव, संघर्षों तथा विसंगतियों के बीच भी जो जिजीविषा सुरक्षित बची रह गयी है वह सम्भवतः गीतों के कारण ही बची है.घर-परिवार और सामाजिकता का जुआ मेरे कन्धों में तभी कस गया था जब पैरों में उस जुए को सम्भालने की शक्ति भी नहीं आई थी. लेकिन हार मैने कभी नहीं मानी. जुए को साधे हुए ही मैंने अपने कमजोर पैरों के लिए शक्ति अर्जित की. घर-परिवार और सामाजिकता का बोझ ढोता रहा. अपनी आँखें मैंने हमेशा खुली रखीं और संवेदना के जल-स्रोतों को कभी सूखने नहीं दिया. आज भी किसी के सुख में भीतर तक आनन्दित होना और किसी के दुख में गहरे तक उतरकर पीड़ा को आत्मसात करना मेरी कमजोरी भी है और शक्ति भी." इस बात की हलफ बयानी उनकी हर कविता करती है. इसी क्रम में मैं अवध जी के परमप्रिय एवं हितैषी नवगीत के महर्षि देवेन्द्र शर्मा 'इन्द्र' के अवध जी एवं उनकी कविताई के प्रति विचारों से पाठकों को अवगत न कराऊँ तो यह मेरा अपराध होगा. वे कहते हैं कि "भाषा विज्ञान की पुस्तक में पढ़ा था कि बांट् परिवार की अफ्रीकी भाषा में जब कोई व्यक्ति गहरे पानी में डूब रहा होता है तब वह आत्मरक्षा के लिए विकल स्वर में पुकारने लगता है 'नाधो लिनिन' जिसका अर्थ होता है 'मेरे लिए नाव लाओ'. पानी में डूबने के प्रसंग को यदि मैं सुन्दर और प्राणस्पर्शी कविता के सन्दर्भ में घटित करूँ तो कहना चाहूँगा कि उसके रसात्मक आनन्द के महाम्बुधि में जो डूब नहीं पाया वो अभागा ही रह गया जैसा कि महाकवि बिहारी ने लिखा है कि--
'तंत्रीनाद कवित्त रस, सरस राग रति रंग
अनबूड़े, बूड़े तरे, जे बूड़े सब अंग'
मेरे लिए अवध भाई का हर गीत और हर कविता प्रीतिकर है जिसमें निमग्न होकर मैं किनारे पर लगने की कामना कदापि नहीं कर सकता. मुझे यदि अपने गीतों में तात्समिक शिल्प-निष्ठा अनिवार्य प्रतीत होती है, तो अवध भाई की शिल्पहीन सरलता पर मैं सदके जावाँ हूँ. अद्भुत चमत्कार है इस व्यक्ति की भाषा में जो सरलतम होकर भी उनके गीतों को सपाटबयानी से ज़ख्मआलूदा नहीं होने देती."
उक्त मनीषियों के उद्गारों को आत्मसात कर कहा जा सकता है कि कविता कवि की गहन संवेदनात्मक अनुभूति का प्रतिबिम्ब होती है. कवि जितना ही निश्छल, सरल-तरल होगा उसकी कविताई भी उतनी ही प्राणवन्त होगी. अवध बिहारी जी की कविताएँ जैसी सरल-सहज और पारदर्शी हैं, वैसा ही उनका संवेदनाओं से लबरेज सहज-सरल व्यक्तित्व है. वे और उनकी कविताई एक दूसरे के अनुगामी हैं, सम्पूरक हैं. प्रस्तुत संकलन की कविताओं में अवगाहन करते समय सहृदय पाठक भी यही महसूस करेंगे, ऐसा मुझे विश्वास है. मैं अवध बिहारी जी के स्वस्थ व सुदीर्घ जीवन के साथ निरन्तर उनके साहित्यिक अवदान में श्री वृद्धि की कामना करता हूँ.
मैं सुप्रसिद्ध ग़ज़ल-गो भाई राजेन्द्र तिवारी और 'भारतीय साहित्य संग्रह' के स्वत्वाधिकारी श्री गोपाल शुक्ल जी के प्रति हृदय से कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ जिनके अथक प्रयास के कारण अल्पावधि में प्रस्तुत संग्रह प्रकाशित हो सका.
आप सभी सुधी जनों की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी.
- शैलेन्द्र शर्मा
18 जुलाई 2023
कानपुर.
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